पल दो पल का नग्मा

Yogesh kumar
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ज़िंदगी को समझो तो सच ,

ना समझो तो सपना है ।

हकीकत है ज़िंदगी ,

या जैसे कोई कल्पना है ।

पल में हसाती है ज़िंदगी ,

तो दूजे ही पल गम दे जाती है ज़िंदगी ।

ईसीलिये तो शायद,

पल दो पल का नग्मा कही जाती है ज़िंदगी ।

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