ज़िंदगी को समझो तो सच ,
ना समझो तो सपना है ।
हकीकत है ज़िंदगी ,
या जैसे कोई कल्पना है ।
पल में हसाती है ज़िंदगी ,
तो दूजे ही पल गम दे जाती है ज़िंदगी ।
ईसीलिये तो शायद,
पल दो पल का नग्मा कही जाती है ज़िंदगी ।
ज़िंदगी को समझो तो सच ,
ना समझो तो सपना है ।
हकीकत है ज़िंदगी ,
या जैसे कोई कल्पना है ।
पल में हसाती है ज़िंदगी ,
तो दूजे ही पल गम दे जाती है ज़िंदगी ।
ईसीलिये तो शायद,
पल दो पल का नग्मा कही जाती है ज़िंदगी ।
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